२३ फरवरी :
मुंबई ---कितने मंटो के नाम एक अनूठा सेमिनार.
मज़ा...मज़ा....पूरा
दिन बहुत मज़ा किया....बहुत सारे मंटो से मिले पूरे दिन.....कोई मंटो की कहानी पढ़
कर हंसा रहा है....कोई
मंटो पर इस्मत आपा का पेन स्केच सुना कर अनोखे रिश्ते की तस्वीर दिखा रहा है...कोई
हिंदी भाषा मे और निजी धुन में मंटो के नाम कविता ‘गा’ रहा है ....कोई पाकिस्तान में मंटो की
कबर का ब्यौरा दे रहा है ....कोई आज से ५० साल पहले मंटो उसके दिल में कैसे घर कर
के जी उठा यह बता रहा है....कोई मंटो को मराठी में ऐसे पढ़ रहा है की हमे लगे की
क्या ‘खोल दो’ कहानी मंटो ने मराठी में लिखी थी...? तो कोई गुजराती भाषा में बखेडा खड़ा कर
रहा है की : ”हमारी भाषा में मंटो जैसा कहानीकार क्यों
नहीं...!! “ कोई मंटो के अमरीका से मुखातिब 'चाचा सेम के नाम' लिखे खत पढ़ कर चकित कर रहा है जिसमे मंटो ने लिखा है : “ चाचा....आपको मेरे जैसा भतीजा एटमबम की रौशनी मैं भी
ढूंढने पर नहीं मिलेगा....”.....!! जस्ट इमेज इन --- “एटमबम की रौशनी...” .....!!
हैदराबाद में
हुए बमस्फोट का एक सामूहिक शोक मनाया जाए एसी जावेद सिद्दीकी की बिनती को सभी ने
भारी दिल से स्वीकारा और इस तरह कुछ अनयुज्वल नोट पर यह सेमिनार शुरू हुआ....
राजेन्द्र
गुप्ता ने ‘फौजा’ कहानी सुनाई जिस में एक आदमी किसी होटल में कुछ
लोगो को चाय पिते हुए किसी अनोखे सरफिरे किरदार –फौजा- के क़िस्से सुना रहा है....और राजेन्द्र जी ने जो रस
ले कर कहानी सुनाई .....जो रस ले कर कहानी सुनाई की मानो वो चर्नी रोड का ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ का ऑडिटोरियम उस बीस मिनट के लिए मंटो की कहानी के होटल में
तब्दील हो गया...!! असीम काव्यानि ने बताया की मंटो के किरदार कैसे अपनी जिस्मानी
ख़्वाहिश /सोच को ले कर ईमानदारी से पेश हुए है.... सादिया सिद्दीकी ने ‘सड़क के किनारे ‘ कहानी सुनाई तो ऐसे भाव मे बह कर सुनाई
की पहली बार महसूस हुआ की बड़ा फ्रोड है मंटो,-----कहानी के नाम एक अच्छी ख़ासी कविता
पढवा दी है इसने तो हमें....!! नंदिनी आत्मसिध्धने स्पष्ट किया की मंटो मराठी में
अजनबी नहीं तो, गुजराती नाट्य कलाकार चिराग वोरा, रिंकू पटेल और धर्मेन्द्र गोहिल गुजराती और हिन्दी में
मिला झूला मंटो के ‘कबीर’ और ‘अल्लाह का फजल’ का ब्यौरा दे रहे है...तो संजय छेल
गुजराती भाषा मे इस बात की कल्पना के साथ की ‘आज मंटो जिंदा होता तो गोधराकांड के हवाले से कैसी ‘सियाह हाशिया’ सीरीज की लघु कथा पेश करता...? ” --- और पेश होते है चार अफ़साने...!! हिन्दी सिनेमा के अभिनेता यशपाल शर्मा ने स्वरचित गीत को खुद गा कर सुनाया...मंगेश भिडे ने अति
भावुक हो कर मराठी में ‘खोल दो’ कथा
प्रस्तुत की तो खालिद महोम्मद ने बताया की उन्होंने एक बार कुछ लिखा और कोर्ट केस हुआ सो कैसे बाद
में वे सम्हाल सम्हाल के लिखने लगे और
मंटो ने कैसे केस के सिलसिले झेलते हुए अपने तेवर में लिखना जारी रखा...!!
अतुल
तिवारी ने पाकिस्तान में मंटो को लोग कैसे याद करते है /या कैसे भूल गए है –वो बातें की...गोपाल तिवारी, असद, सुब्रो और सादिया सिद्दीकी ने ‘चाचा सेम’ के नाम खत पढ़े
तो चंद्रकांत भुन्जाल साहब ने मराठी भाषा में अगर मंटो और अन्य उर्दू कहानी का
अनुवाद नहीं होता तो क्यों नहीं होता उसका जवाब समझाया..तो दिलीप जोशी और दिशा
वकानी [तारक महेता...टीवी शो फेम ] ने मंटो की वो दिल खुश नोक-झोंक वाली कहानी
सुनाई की पता चला : ओह मंटो तो कभी कभी हल्का-फूलका भी लिख लेता था....तो आर.
एस.वकल साहब के हिन्दी नाटक ‘मंटो जिंदा है ’ का एक १५ मिनट का टुकड़ा भी ड्रेस, प्रोपर्टी और लाइट्स के ताम-झाम के साथ पेश हो गया-[विराट
कलाभाऊ ग्रुप]- ....शिरीन दलवी ने मंटो की कहानी पर लिखी नज़्म पेश की तो सईद राही
साहब ने मंटो पर गज़ल पढ़ी...
दर्पण मिश्र ने
मंटो की फिल्म सफर के एक विनोदी अभिनेता, देसाई का मंटो ने किया हुआ दिलकश ब्यौरा
पढ़ा..तो अमरीका से आये हुए समीक्षक अहमद सुहेल ने कहा की : मंटो के पास गुज़रे हुए
वक्त, मौजूदा वक़्त और कल के आने वाले वक़्त की
गहरी समझ थी जो उसके अफसानों में और उसके दूसरे लेखन से हमे पता चलती है” तो उर्दू भाषा के मशहूर लेखक सलाम बिन
रजाक ने अपना निरीक्षण पेश किया की : मंटो पर यह आरोप लगता रहा है की उसने सेक्स
को विषय बना कर लिखा पर यह गलत आकलन है –सच तो यह है की मंटो ने हमेशा इंसानी रिश्तों को विषय बनाया और उसकी कहानिओं
में इंसान की अच्छाई और बुराई का संघर्ष पेश होता रहा है...
-एक ओर मंटो ने पाकिस्तान से अमरीका को लिखे खत पढ़े गए तो दूसरी ओर
ह्रुतुल जोशी ने अमदावाद से मंटो
को लिखा गुजराती खत बाँटा भी गया.....
तो गुजराती लेखक
पियूष पाठक ने मंटो से कभी मुलाकात नहीं होने के बावजूद कैसे मंटो से दोस्ती है यह
बयान किया...लुब्ना सिद्दीकी ने गुलज़ार की वो कविता सुनाई जो टोबाटेक सिंह पर लिखी
गई है तो सुनीता मालपानी ने अपनी अंग्रेजी कविता में बताया की वो मंटो से क्यों
खफ़ा है....पहले सेशन की एंकर प्रियंका जैन ने नंदिनी आत्मसिध्धका परिचय देते हुए
बताया की : यह पुल बनाने का काम करती है...क्योंकि उर्दू/हिन्दी से मराठी में
अनुवाद करती है..!!.....‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’ ने इसी जलसे में रत्ना पाठक शाह के हाथों
मंटो पर एक छोटी सी किताब “ असरे हाज़िर के आईने में “ [ संपादक: महम्मद हुसैन परकार, प्रकाशक : अथर अज़ीज़ ] का उदघाटन करवाया... आख़िरी सेशन के
एंकर वकार कादरी ने कहा की बड़ी बड़ी यूनिवर्सिटी जो रिजल्ट तीन दिन के सेमिनार में
नहीं पा सकती वो रिजल्ट असलम परवेज़ ने एक दिन के सेमिनार में हासिल कर दिखाया
है....मंटो की कथाओं को हिन्दी भाषा में अनुवाद कर चुके वरिष्ठ लेखक नरेंद्र मोहन
ने मंटो की कथा ‘खोल दो’ पर उन्होंने देखी हुई नृत्य –प्रस्तुति का अनुभव सब के संग बांटा -----तो रत्ना पाठक शाह
ने इस्मत चुगताई ने मंटो पर लिखा खाका पेश किया....सागर सरहदी ने बताया की : आज
मंटो को ‘कोमरेड’ कहने वाले लेफ्टिस्ट ग्रुपने जब मंटो जिंदा था तब कैसे उसे ‘आउटसाइडर’ घोषित किया
था....तो जावेद सिद्दीकी ने कहा की “ भाषा का उद्देश्य लोगो को जोड़ना है पर इन दिनों भाषा से भी
लोगो में फुट डालने का काम लिया जा रहा है – इस परिप्रेक्षमे मंटो का यह कमाल है की भाषा की सरहदों को
पार कर के वो विविध भाषा में अनोखे पुल आज तक निर्माण करते रहा है –मसलन आज का यह बहु-भाषी जलसा...“
शुक्रिया ‘नया वरक’....शुक्रिया ‘सबरंग’....
इस सेमिनार की
कुछ बातें एकदम अनोखी थी –
-जैसे सेमिनार
हुआ उस हॉल में उन चित्रों को रखा गया था जो मंटो की कृति से प्रेरित थे...
-जैसे मंटो के
पोस्टर,
उसके क्वोट के साथ अंग्रेजी ,उर्दू और हिन्दी भाषा मे
प्रदर्शित किये गए...
-जैसे सेमिनार
में हिस्सा लेने वाले हर अतिथि को ‘कितने मंटो’ नामक जो
ट्रोफी दी गई उस ट्रोफी रचने वाले कलाकार का भी सम्मान किया गया....
-जैसे सुबह १० से
ले कर शाम आठ बजे तक चले इस सेमिनार के ६ सेशन में लगातार १२५ से अधिक दर्शकों की
मौजूदगी बनी रही. यह इस लिए खास बात है क्योंकि जब कोई युनिवर्सिटी या साहित्यिक
संस्था सेमिनार का आयोजन करती है तो उनका ख़ौफ़ यह रहता है की ऑडिटोरियम खाली नहीं
दिखना चाहिए....युनिवर्सिटी तो अपनी सत्ता के चलते छात्र और अध्यापकों को जबरन
कुर्सियां ‘भरने’ दबाव डाल देते है. पर यहाँ वो लोग थे जो अखबार में छपी
प्रेस नोट और फेसबुक में दी गई सूचना के चलते आ पहुंचे थे...
-जैसे शायद ही कोई
सेमिनार होगा जो किसी एक शख्स की कोशिश से आयोजित हुआ हो. इस शख्स का नाम है असलम
परवेज़, जो सेमिनार में परदे के पीछे ही रहे पर यह ब्यौरा जो आप पढ़ रहे है उस लिखने
वाले की आँखों देखी यह बात है की इस सेमीनार का आयोजन / डिजाइन / भागदौड़ / आवश्यक
संपर्क व्यवस्था / इन्विटेशन के ले-आउट से लेकर पोस्टर की संकल्पना –और सेमिनार के लिए जरूरी कई दौडधूप का ८०
% ज़िम्मा अकेले असलम परवेज़ ने निभाया.
--नाटक, कविता, पेन स्केच, कहानी, खत, आलोचना, व्यंग्य, शायरी, रंगमंच-फिल्म-टीवी कलाकार, कवि, लेखक, साहित्य समीक्षक, पाठक, अंग्रेजी, गुजराती, उर्दू, हिन्दी, अमेरिका से ले कर मीरा रोड तक के लोग, पाकिस्तान से ले कर जोगेश्वरी की इस्माइल युसूफ कोलेज के
संस्मरण, पुस्तक-विमोचन....कित कितने मंटो....!!
इस सेमिनार में फिल्म लेखक अतुल तिवारी ने मंटो के हवाले से पाकिस्तान की
मुलाक़ात पर बाते की और मंटो की लघुकथा ‘सियाह
हाशिये’ की कुछ कथा सुनाई जो साथ दिए गए लिंक पर देखा जा सकता है :
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raju patel, thanks for the detailed and interesting report.
ReplyDeleteand a salute to Aslam Parvez.
दीपक......तुमने मिस कर दिया यह जलसा....
Deletethank you dost,tumne yaadein taaza kardi hain...
ReplyDeleteप्रियंका.... :) तुम तो भई स्टार थी सेमिनार की.... :)
DeleteThanx for this detailed report. People like us who couldn't attend it can get the picture.
ReplyDeleteYes BirenBhai it was great fun.....:)
Deletebahut achi report bana dali
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया रौनक....:)
Deletebahut bahut badhai Raju aapko sangosthi ki safalta ke liye ...
ReplyDeleteप्रदीप.....बहुत आभार आपका...
Deleteraju tumne to poora chitra aise kheecnch diya jaise mere saamne hi samaroh ho raha ho..ise padhkar hi tumhare romanch ka pata chal raha hai :-) safalta ke liye bahut bahut badhai ..aasha hai aise anek safal utsav ki rooprekha tum hume aise hi sunate raho :-)
ReplyDeleteपारुल....पंखुरी...:) बलके मैं चाहता हूँ की ऐसे अनेक उत्सव में तुम शामिल हो...:) बहुत शुक्रिया -
ReplyDeleteइस सेमीनार की सफलता और इसका विवरण पढ़कर जहाँ ख़ुशी हुई कि ऐसे आयोजनों में आज भी लोगों की दिलचस्पी है ...वहीँ इस बात का बेहद अफ़सोस भी है कि दो घंटे तक सेमीनार का स्थान ढूंढने के बावजूद मुझे खाली ही लौटना पड़ा .....सबक मिला कि नई जगह जाना हो तो कम से कम एक दिन पहले जगह देख लेनी चाहिए
ReplyDeleteये बात मेरे लिए बहुत नई है कि मंटो ने गंभीर कहानियों के अलावा भी कुछ लिखा है और हाँ राजू ....सारा विवरण लिखने का आपका अंदाज़ बहुत ही दिलचस्प है ......बहुत बहुत शुभ-कामनायें
ओह शिखा--- अब मुझे पछतावा हो रहा है की मैंने अपना फोन नं. आप को क्यों नहीं दिया...!! यार बहुत ही बढ़िया मौका आपने मिस किया मेरी गैर जिम्मेदारी से -- आई एम एक्स्ट्रीमली सोरी...
ReplyDeletemissed this prog.
ReplyDeletewould like to have recording if it's done.
Thanks for the report and aslambhai's great efforts.
Urvish,
ReplyDeleteyes it was really big day....
we don't have complete recording... Sunita, a friend have recorded some parts which we will upload one by one -two links are already given at the bottom of the seminar report and will keep adding links at same place.
sunder report....
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